Sunday, January 30, 2022

ग्रह की दश अवस्था

अवस्था के बारे में बात करेंगे ग्रहों की 10 अवस्था होती है और भाव का अधिपति 10 अवस्थाओं में से जो अवस्था में है उसका पहला बल का निर्णय होता है
वह 10 अवस्था कौन सी है 
1. दीप्त अवस्था:
जो ग्रह अपनी उच्च राशि में या मूल त्रिकोण राशि में या खुद की राशि में होता है तब वह ग्रह दीप्त अवस्था में होता है ।
दीप्त अवस्था में स्थित ग्रह की दशा में जातक अपने प्रताप से प्रचंड खुद के शत्रुओं का नाश करता है, लक्ष्मी होती है।
2.स्वस्थ अवस्था:
स्वस्थ अवस्था जोक रहा अपनी उच्च राशि में होता है ।
स्वस्थ ग्रह की दशा में जातक को रत्न प्राप्ति सुख प्राप्ति 
सुवर्ण रत्ना आदि की प्राप्ति होती है उच्च पद एवं ग्रुप कुटुंब की वृद्धि होती है

3. मुदित अवस्था जब ग्रहों अपने मित्र राशि में हो तो मुदित अवस्था होता है
मुदित अवस्था में स्थित ग्रहों की दशा में जातक हर्ष पूर्ण, स्वर्णा दी रत्नों से परिपूर्ण, शत्रु का नाश करने वाला, समस्त सुखों का भुगतान होता है
4. शांत अवस्था जो ग्रह चंद्र से युक्त होता है वह शांत अवस्था में होता है
शांत ग्रह की दशा में जातक शांत चित्र वाला सुख और धन युक्त, राजा का मंत्री, परोपकारी, धर्म लीन होता है
5. अवस्था मित्र ग्रह से युक्त हो तथा शुभ में हो वह ग्रह शक्त अवस्था में होता है
अवस्था में स्थित ग्रह की दशा में जातक श्री सुख वस्त्र माला सुगंध आदि पदार्थों से सुशोभित यशस्वी तथा सर्वर साधारण जनों का स्वामी, और प्रसिद्ध होता है
6. पीड़ित अवस्था शत्रु क्षेत्री या ग्रह से संबंधित हो जो पीड़ित अवस्था में होता है
ग्रह की दशा में जातक रोग शत्रु आदि से दुखी पीड़ित तथा बंधु जनों से वियोग में देश देशांतर में भ्रमण करता है
7. हीन अवस्था नवमांश में निर्बल होने पर ग्रहण या फिर अवस्था में होता है
हीन के ग्रहों की दशा में जातक संघर्ष करते हुए बल हीन हो जाता है, शत्रु पीड़ित, पराजित होता है और अत्यंत दीनता को प्राप्त करता है
8. खल अवस्था या विकल अवस्था जो ग्रह अशुभ वर्ग में हो खल अवस्था में होता है
इस अवस्था में स्थित ग्रह की दशा में स्थान पदभ्रष्ट, 
युक्त मलिन परदेस वासी बोल रही थी शत्रु के भय से शंका युक्त रहता
9. विकल अवस्था जो ग्रह अस्त का होता है वह विकल अवस्था में होता है
विकल अवस्था में स्थित ग्रहों की दशा में स्थान भ्रष्ट, पर देशवासी, निर्बल होता है,
10. भीत अवस्था जो ग्रह नीच का होता है वह भीत में होता है
इस अवस्था में स्थित ग्रहों की दशा में जातक कितना भी प्रयत्न कर ले पर सफल नहीं हो पाता दीनता का अनुभव करता हुआ प्राचीन एवं पीड़ित होता है।

सूर्यादियोग

सूर्य से द्वादश स्थान चंद्रा के अलावा कोई भी ग्रह हो तो वासी नाम का योग होता है।
 सूर्य से द्वितीय स्थान में चंद्र के सिवा अन्य कोई भी ग्रह हो तो वेशी नाम का योग होता है।
 सूर्य से द्वितीय और द्वादश स्थान में कोई भी ग्रह हो चंद्र के अलावा तो उभयचरिनाम का योग होता है।

वेशि योग मन दृष्टि वाला दृढ़ प्रतिज्ञा करने वाला पराक्रमी शरीर का आगे का भाग झुका हुआ होता है।
गुरु से वेशियोग जातक धन संचय विद्वान सूरत आई होता है यदि शुक्र से वैसी योग हो तो जातक डरपोक और उदित और अल्प चेष्टा वान होता है।
 यदि बुध से वेशियोग हो तो अनेक कार्य करने वाला दरिद्र कोमल विनय और जवान होता है।
 मंगल से वैसी योग हो तो अधिक जल्दी से चलने वाला और पराक्रमी होता है परोपकारी होता है।
सनी से भी ऐसी योग हो तो अन्य स्त्री में अधिक रस रखने वाला उग्र स्वरूप वाला वृद्ध आकृति वाला, शठ और घृणावान किंतु धनवान होता है।

वोशीयोग में पैदा होना हर व्यक्ति एक ही बात करता है अच्छी स्मरण शक्ति वाला तीव्र दृष्टि वाला और कम कमर से ऊपर के भाग अधिक स्थूल होता है ।राजा तुल्य और सत्वगुणी होता है।
गुरु से वोसी योग होता है तो धैर्यवान बल बुद्धि युक्त वचन पालन करने वाला होता है।
शुक्र से वोशी योग हो तो सूरवीर प्रख्यात गुणवान और यशस्वी होता है।
बुधसे वोसी योग हो तो प्रिय भक्ता सुंदर अन्य की आज्ञा को मानने वाला होता है।
मंगल से वोसी योग हो तो विजयिऔर अपने भाग्य पर जीता है।
सनी से वोसी योग हो तो व्यापारी दृष्टि सभावाला और अन्य के धन पर दृष्टि रखने वाला और निर्लज्ज होता है।

उभयचरी योग में पैदा हुआ व्यक्ति अन्य का भार सहन करने वाला कल्याण की भावना वाला सुंदरशरीर वाला स्थिर बुद्धि सारी संतोषी विद्वान सुंदर नौकर चाकर युक्त अपने बंधु जनों का पालक उत्साही व्यापारी और सुखी और वह भी होता है।

चंद्रादियोग

चंद्राद्रीयोग 
चंद्र से सूर्य के अलावा अन्य कोई ग्रह चंद्र से द्वितीय स्थान पर हो तो सुनफा होता है ।
चंद्र से द्वादश स्थान पर सूर्य के अलावा अन्य कोई ग्रह हो तो अनफा योग होता हैl
 चंद्र से द्वितीय और द्वादश स्थान में सूर्य के अलावा अन्य कोई ग्रह हो तो दुरुधरायोग होता है।
चंद्र से द्वितीय और द्वादश स्थान में कोई भी ग्रह न हो तो एवं चंद्र से केंद्र में भी कोई भी ग्रह ना हो तथा चंद्र पर कोई ग्रह की दृष्टि ना होती हो तो केमद्रुम योग होता है।

सुनफा योग में पैदा होने वाला लक्ष्मीवान,अपने बल से धन कमाता है धार्मिक एवं सशस्त्र के का ज्ञाता यशस्वी * एवं शांत बुद्धिमान और उच्च पद पर कार्यरत रहता है। अनफा योग में पैदा होने वाला वक्ता प्रभावशाली धनवान निरोगी सुशील अन्य पुष्प वस्त्र और स्त्री अधिक से सुखी विख्यात गुणवान सुखी प्रसन्न एवं स्वरूपवान होता हैं।
दुरुधरा योग में पैदा होने वाला व्यक्ति वचन बुद्धि कर्म और गुणों से विख्यात होता है दानी कुटुंब में पोषण मे श्रम लेना होता है स्वतंत्र सुखी धनवान वाहन आदि का सुख वाला सब व्यवहार और कार्य में तल्लीन होता है।
केमद्रुम में पैदा होने वाला व्यक्ति राजवंश में भी पैदा हो फिर भी स्त्री अन्य ग्रहों वस्त्र और मित्र हीन होता है दायित्व दुख रोग दीनता से युक्त होता है मेहनत करने वाला किंतु दुष्ट और विरुद्ध व्यवहार करने वाला होता है।

सुल्फा योग यदि मंगल से होता है तो पराक्रमी धनवान कठोर वचन बोलने वाला उपग्रह हिंसक दंभी एवं विरोधी होता है।
सुनफायोग बुध से होता है तो वेद शास्त्र संगीत विद्या में निपुण धर्मात्मा कवि मनस्वी दूसरों के लिए हित करने वाला और सुंदर शरीर वाला होता है।
गुरु से सुनफा होता है तो जातक सर्व विद्या में पूर्ण विख्यात राज्य प्रिय कुटुंब धन और संपत्ति संपत्ति से युक्त होता है।
शुक्र से सुनफा योग हो तो जातक स्त्री धन वैभव एवं चतुष्पादा प्राणियों से युक्त गवर्नमेंट से सम्मानित धैर्यवान और पोषण होता है।
शनी से सुनफा योग हो तो जातक चतुर बुद्धिवान गांव नगर जनों से पूजित पैसे वाला कार्य संबंधित एवं धीर गंभीर होता है।
अनफा योग
 से अनफा योग हो तो जातक चोरों का सरदार दुष्ट सोमानी संग्राम को सर क्रोधी अग्रणी ईर्ष्या वाला सुंदर शरीर वाला और लाभ युक्त होता है।
बुध से अनफा योग हो तो नाच गान एवं लेखन में निपुण कवि भाषण में होशियार राजा से सम्मानित सुंदर एवं प्रसिद्ध काl।
दुरु धर योग
मंगल बुध से दूरुधरा योग हो तो जातक खेती करने वाला धनिक कार्य कुशल लोभी विरुद्ध एवं निम्न स्त्री का प्रेमी और अपने कुल में अग्रणी होता है।
मंगल और गुरु से युक्त अनुदान आयोग हो तो अपने न्याति में विख्यात धनिक अनेक लोगों से पैर रखने वाला क्रोधी आनंदी और धन संग्रह करने वाला होता है।
यदि मंगल और शुक्र से दूर उतरा योग होता है तो सुंदर स्त्री वाला स्वरूप वाद-विवाद ई पवित्र कार्य को सर व्यायाम के शौकीन और शूरवीर होता है।
यदि मंगल और शनि से युक्त दूर उधर आयोग हो तो जातक निम्न कक्षा की व्यक्ति से प्रेम संबंध रखने वाला अधिक धन संचय करने वाला व्यवसाय क्रोधी और शत्रुओं को विजय करने वाला होता है।
बुध और गुरु से दूर उतरा योग हो तो जातक धर्मात्मा शास्त्र का ज्ञाता वक्ता कवि धनिक और विख्यात होता है।
बुध और शुक्र के बीच चंद्रमा हो तो मधुर वक्ता 100 भाग्यवान स्वरूप का नृत्य और गायन का शौकीन नौकर चाकर से युक्त और अच्छे स्थान पर कार्यरत होता है।
बुध और शनि से दूर उधर आयोग हो तो जातक थोड़ी विद्या से देश विदेश घूम कर पैसा कमाने वाला अन्य से पूजित और अपने लोगों से युक्त होता है।
यदि गुरु शुक्र से इधर-उधर आयोग हो तो जातक धीर मेघावी पराक्रमी नीति के ज्ञाता स्वर्ण रत्नों से युक्त और विख्यात राज्य कर्मचारी होता है।
 कार्य दक्ष श्रेष्ठ शांत और तनिक होता है। शुक्र और शनि से गुरुद्वारा योग हो तो जातक विरुद्ध समान देखने वाला क्रिया वांट अपने कुल में उत्तम निपुण एवं स्त्री वर्ग में प्रिय द नियुक्त और राजकीय सम्मान प्राप्त करता है।

सूर्य से चंद्र केंद्र में हो तो धन बुद्धि निपुणता होती है किंतु विद्या और विनय अल्प होते हैं यदि पल भर में सूर्य चंद्र का संबंध होता हो तो वह मध्यम होता है और आप ओके में सूर्य चंद्र का संबंध उत्तम कहता है।

रात को जन्म हो चंद्रसेन हो या अदृश्य हो या सतीश के नीचे हो या उत्पाद सहित हो तो मध्यम फल देता है पूर्णचंद्र उसे विपरीत शुभ फल देता है।
लग्न से सुबह करो 50 स्थान यानी 36 1011 में हो तो धनवान दो सुबग्रुप्स से ऊपर चाय स्थान में हो तो मध्यम धनवान और एक अक्रू 50 स्थान में हो तो अलवर मान जाना चाहिए यही प्रकार से चंद्र का भी ख्याल करना चाहिए।

लग्नेश

लग्नेश यदि चंद्र होता है तो उसकी असर आकृति पोषण और निभाओ करने में लगती है संसार में ग्रुप प्रेम की प्रकृति मजबूत होती है जातक का चित्र कुटुंब और मां-बाप के प्रति अधिक रहता है कल्पना शक्ति अधिक होने के कारण एवं लावणी सेल होने के कारण और मन निरंतर निर्भर होने के कारण उनका स्वभाव विचारों में स्थिरता नहीं लाता। जातक में शक्ति और खंड की कमी दिखाई देती है वह अनुभव और कार्य करवा करने की बुद्धि वाले संसारी जिंदगी वाली व्यवसाय शास्त्र और हुनर के लायक होते हैं यह सावत समझो और थोड़े से कंजूस होते हैं हर चीज में दिव्य दृष्टि वाले होते होते हैं। जातक अपनी लावणी की भावना को कंट्रोल रखें तो यह अनुभवी और शक्तिशाली होते हैं।

लग्नेश बुध
कन्या और मिथुन राशि का स्वामी बुध होता है। यदि लग्नेश बुध होने पर उसकी असर मगज एवं ज्ञान तंतु पर अधिक दिखाई देती है इंद्रियां से ज्यादा मन का संबंध आगरा शारीरिक मानसिक शक्ति स्मरण शक्ति बुद्धि कंफर्टनेस युक्ति इत्यादि पर ज्यादा दिखाई देती है जातक वक्ता विवादी विचारशील और बातचीत में कुशल होते हैं यह गुप्ता से भरे हुए कार्य करने के लिए होते हैं इनकी समग्र प्रकृति कदाचित ही दुनिया में प्रदर्शित होती है उनका एक प्रकृति का भाग जो उसके खुद के प्रिय मित्र जन भी जान नहीं पाते जातक का मन चालक होने के बावजूद अस्थिर और खंड की खामी वाला होता है यह लोग अनेक विषय को एक साथ सुनने वाले अन्य लोग के विचार और स्वभाव के अनुरूप होने वाले सत्य को शोध ढूंढने वाले वाचन लखन और भाषण के शौकीन होते हैं।

लग्नेश शुक्र
वृषभ और तुला राशि के स्वामी शुक्र होते हैं। यदि लग्नेश शुक्र है तो जातक प्रेम सौंदर्य के अधिष्ठाता होने के कारण स्मृतियों से मजबूत होकर व्यवहार प्रकृति से चालक और मजबूत बनते हैं। अपने अंदर की लावणी और मित्रता के लायक होते हैं सदा संबंधित और मित्रों से युक्त, शौकीन मायारू और शांत स्वभाव की और अनुकूल होते हैं ।यह मौज मस्ती आनंद वैभव शांति और सुख के बहुत शौकीन होते हैं इनको अपने आप पर सहज प्रतिबंध या अंकुश रखना आवश्यक होता है यह सुंदरता वातावरण वस्त्र घृणा और सुधार के शौकीन होते हैं स्वच्छता और अनुक्रमण की कीमत समझते हैं अगर यह थोड़ा सा ध्यान दें तो अच्छे गायन संगीत हुनर और कविता का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं इनका अच्छा भाग्य और नाना संबंधित ज्ञान होने के कारण यह वही व्यवसाय में अनुकूल होते हैं इनका स्वभाव आनंदी आ सावंत सुशील लोकप्रिय और बहू मित्रता वाला सौंदर्य के चमक प्रेम इत्यादि के चाहक होते हैं।

सी राशि का स्वामी सूर्य है यदि सूर्य लग्नेश हो तो उसकी असर शारीरिक मानसिक प्रकृति से जीवन में बोर और तेज देने वाली होती है यह मानवत, मजबूत मनोबल वाले होते हैं कार्य में अच्छा परिणाम लाने की इच्छा वाले लूबी होते हैं यह सत्ता सत्ता सील एवं दरें कार्य में अग्रसर रहने की इच्छा वाले, कार्य एवं मनुष्य की व्यवस्था से संबंधित योजना करने में शक्तिशाली होते हैं यह दुख में काम करने से पीछे हटते नहीं है यह मायालु उदार अच्छे प्रशंसा सुनने वाले एवं निठारी लोग को दिखाते हैं उनका व्यवहार और प्रमाण स्वभाव होता है उनका स्वभाव मित्रों एवं संबंधियों को आकर्षित करता है जातक सुख संपत्ति और वैभव एवं मौज मजा करने की चाह वाले। उनका ह्रदय एवं तृष्णा की  निर्बलता से अन्य द्वारा प्रेरित होते हैं।

लग्नेश मंगल
मेष एवं वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल होता है लग्नेश मंगल अग्नि से भरा हुआ गुस्से वाला प्रमाणिक और प्रसारण का ग्रह है जातक जलद चालाक थी लावणी वाला स्वतंत्र और स्वतंत्र रहने की चाह वाला होता है इन्हें प्रतिबंध बंधन बिल्कुल सहन नहीं होती यह उदार सीधे शारीरिक एवं नैतिक खुले पन वाले बहादुर तथा हिम्मत के गुण होते हैं जातक में आत्म बल स्वास्थ्य वाणी और चाल कार्य में चालाकी होती है जातक बहुत साहसिक और चक्की होने के कारण सावत रहना आवश्यक है । क्योंकि कछुआ और प्लेस में पहल करने वाले और मन की धारणा को पूर्ण करने के वलन वाले होते हैं जिसके कारण अनेक उपाधि उनको सहन करनी पड़ती है। जातक चालाकी और दूसरे से अल्प समय में बहुत काम कर जाते हैं यह भी नहीं होते हैं।

लग्नेश गुरु
यह ग्रहो मनुष्य को मानव अंत उदार और आनंदी स्वभाव देता है जिसके कारण लोग चाहना और प्रशंसा इनको मिलती है यह लोकप्रिय और अधिक मित्र वाले होते हैं यह पराग परोपकारी उदार मायारू मदद करना और योग्य कारणों से सहायता करना होते हैं यह कायदा सत्ता हुकम रीत रिवाज जैसे नियमों को मान देते हैं और सभ्यता ऑफिस जारी पढ़ो कुसुम थारी चाल और नखरे विचार वालोनू से धिक्कार करते हैं जातक व्यक्ति में संकल्प में और सौंदर्य में मान देते हैं यह उत्साही जननी और विश्वास पात्र होते हैं यह कायदा और धर्म को मानने वाले धार्मिक गरियाबंद सभ्य और शिष्टाचार से बनाए हुए एवं धर्म और तत्व ज्ञान प्राप्त करते हैं।

लग्नेश शनि मकर और कुंभ राशि का स्वामी शनि होता है यह गंभीर विचार सिलता एवं स्वस्थ स्वभाव देता है यह करो अवस्था में असर करने वाला होता है खुद की जात पर बेकाबू प्रतिबंध वाले कंजूस थोड़ी सावत और समझो होते हैं जातक मजबूत मनोबल वाला धीरज वाला खीरा लोग लालच वाला किंतु शांत निर्मल और मुश्किलों में मार्ग ढूंढने वाला होता है चातक कवर चित उदारता आनंद आनंद की कमी वाला उदासीन होता है जातक का व्यवहार कठिन हास्य विनोद और मस्करी की कीमत जानकर जानने वाला होता है जो प्रसंग पर दिखाई देता है यह अनुभवी होता है चालाक और कंजूस आई से मनुष्य एवं कार्यों की व्यवस्था करने में कुशल होता है दीर्घ दृष्टि युक्ति युक्ति ओ वाला योजना योजना बनाने वाला किंतु अमल में रखने में तीर्थ समय निकालता है यह डा पंचायता जितेंद्र यता कंजूस आई मन की शक्ति सत्ता सत्य असत्य के निर्णय जैसे पाठ सिखाता है दैनिक कार्य में विलंब और प्रतिबंध से कार्य करता है।

नक्षत्र विचार

     नक्षत्र के अन्य नाम:

(1) अश्विनी - दास्य, अश्व, आद्य, अश्विन, शरति, अश्वयुग, हय
 (2) भरणी - यम, अंतक, वर्तान, याभ्य।
 (3) कृतिका -वन्ही, सुरैया, हुताशन, अग्नि,बहुला
 (4) रोहिणी - ब्रह्म, ब्राह्म, घाता, घवारा, विधि, विरांची
 (5) मृगशीर्ष-मृग, शीश (चंद्रमा के नाम) हकुआ, सौम्य, मयंक
 (6)आर्द्रा - शिव, रुद्र, ईश्वर, हंजा, ताराका। 
(7) पुनर्वसु- आदित्य, जीरा, सुर, जननी
(8) पुष्य - जय, तीष्य, नसरा, अमरेज्य
(9) आश्लेषा -साप, तुर्फा, अही, भुजंग।
(10) मघा -पीतर, जवहा, जनक, पितृ
(11) पू. फाल्गुनी - भम, जेहरा, भाग्यपूर्वभग
(12) उ.फाल्गुनी -अर्यमन, सफा
(13)हस्त - हाथ, कर, अर्क, पतंग, रवि, अवा, आदित्य
(14)चित्रा - चित्रत्वाराष्ट्र, विश्व, समाक, त्वष्टा
(15)स्वाति -रुत, पवन, वायु, समीर, अनिल, गफरा
(16)विशाखा - प्रीश, इंद्राग्नि, ज़वा
(17) अनुराधा -मित्र, मैत्र, अकली
(18) ज्येष्ठा - इंद्र,शक, कल्ब, शतमुख, सुरस्वामी
(19)मूल - राक्षस, निरुति, कव्य,सोला,असूर,भुज
(20) पू.षाढ़ा- पानी, नीर, ना, पत्र, उडक, सालिब
(21) उ.षाढ़ा- वैश्य, विश्वदेव, बदला, वारी, पथ
(22) श्रवण - श्रति, कर्ण, विष्णु, हरि, बाला, विश्व
(23) धनिष्ठा - वसु, वासव, सोउट,हरी, श्रोणा
(24) शतभिषा - पाशी,वरुण,अरवदा, वसु
(25) पू.भाद्रपद - अजैकपाद, मुकइ, प्रचेला
(26) उ.भाद्रपद- अहिरबुधनन्य, मुझरख,अजैकपाद
(27) रेवती - पुषन,पौष्टा, अनय, रिशा
(28) अभिजीत - ब्रह्मा


1 नक्षत्र में ग्रहों के रहने का समय :
यदि ग्रह वक्री मार्गी होने पर समय में थोड़ा difference हो सकता है।

सूर्य नक्षत्र में - 13 दिन 
चंद्रमा - 24 से 25 घंटे 
मंगल - 20 दिन (लगभग) 
 बुध - 12 से 13 दिन (लगभग) 
 बृहस्पति - 163 दिन (लगभग) 
शुक्र - 13 दिन (लगभग) 
शनि - 13 महीने 20 दिन (लगभग) 
राहु - 243 दिन (लगभग) 
केतु - 243 दिन (लगभग)






सूर्य की गति निश्चित है। इसलिए हर साल सूर्य प्रत्येक नक्षत्र में निश्चित समय पर होता है।यह समय निर्यान पद्धति के अनुसार है।
और                                       यह नक्षत्र के नाम अक्षर है।
(1) अश्विनी में सूर्य   13 अप्रैल              चू, चे, चो, ला
(2) भरणीमें सूर्य 27 अप्रैल।                 ली, लु, ले, लो
(3) कृतिकामें सूर्य 10 मई                    आ, ई, उ, ए
(4) रोहिणीमें सूर्य 24 मई।                   ओ, वा, वी, वु
(5) मृगशीर्षमें सूर्य 7 जून।                   वे, वो,का, की
(6) आर्द्रामें सूर्य 21 जून।                    कु, घ, ड, छ
(7) पुनर्वसुमें सूर्य 5 जुलाई।                 के,को, हा,ही
(8)  पुष्यमें सूर्य 19 जुलाई।                 हु, हे, हो, डा
(9) आश्लेषामें सूर्य 2 अगस्त।              डी, डु, डे, डॉ
(10) मघामें सूर्य 16 अगस्त।               मा, मी, मू, में
(11) पू. फाल्गुनीमें सूर्य 29 अगस्त       मो, टा, टी, टू
(12) उ. फाल्गुनीमें सूर्य 13 सितंबर      ट्रे, टो, पा, पी
(13) हस्तमें सूर्य 26 सितंबर                पू, ष, ण, ठ
(14) चित्रामें सूर्य 10 अक्टूबर।             पे, पो, रा, री
(15) स्वातिमें सूर्य 23 अक्टूबर            रू, रे, रो, ता
(16) विशाखामें सूर्य 5 नवंबर              ती, तू, ते, तो
(17) अनुराधामें सूर्य 19 नवेंबर।         ना, नी, नु, ने
(18) ज्येष्ठामें सूर्य 2दिसंबर।               नो, य, यी, यु
(19) मूलमें सूर्य 16दिसंबर।                ये, यो, भा, भी
(20) पू.षाढ़ामें सूर्य 29 दिसंबर।         भु, धा, फा, ढा
(21) उ.षाढ़ामें सूर्य 11 जनवरी।         भे, भो, जा, जी
(22) श्रवणमें सूर्य 23 जनवरी            खी, खू, खेे, खो
(23) धनिष्ठामें सूर्य 5 फरवरी              गा, गी, गू, गे
(24) शतभिषामें सूर्य 18फरबरी।        गो, सा, सी, सू
(25) पू.भाद्रपदमें सूर्य 4 मार्च।           से, सो, दा, दी
(26)उ.भाद्रपदमें सूर्य 17 मार             दू, ज्ञा, झा, था
(27)रेवतीमें सूर्य 30 मार्च                   दे, दो, चा, ची

पंचक - धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, रेवती ये अंतिम पांच नक्षत्र पंचक कहलाते है। इनमे प्रायः शुभकार्य, काष्टकर्म, पुतलादहन, यात्रा, दक्षिण दिशा यात्रा, व्यापार-व्यवसाय, कार्य प्रारम्भ या नवीन कार्य वर्जित है।

नक्षत्र भेद - गुणो के आधार पर नक्षत्रो के सात भेद है। 1 ध्रुव, 2 चर, 3 उग्र, 4 मिश्र, 5 क्षिप्र, 6 मृदु, 7 तीक्ष्ण। 
1 ध्रुव - रोहिणी, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद ये ध्रुव नक्षत्र है। इनमे गृहारम्भ, विवाह, उपनयन, शान्ति, कृषि कर्म आदि सिद्ध होते है। 
2 चर - पुनर्वसु, स्वाति, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा ये चर नक्षत्र है। इनमे यात्रा, नृत्य, अल्पकालीन कार्य, सवारी, फुलवारी आदि सिद्ध होते है। 
3 उग्र - भरणी, मघा, तीनो पूर्वा (फाल्गुनी, षाढ़ा, भाद्रपद) ये उग्र नक्षत्र है। इनमे विष, अग्नि, शस्त्र, घात कर्म, मारण, क्रूर कर्म सिद्ध होते है। 
4 मिश्र - कृतिका तथा विशाखा ये मिश्र सज्ञक नक्षत्र है। इनमे अग्नि कार्य, अग्निहोत्र, विष, भय युक्त कार्य, अपमिश्रण, गृह, मिश्रित कार्य, वृषस्वार्गादि सिद्ध होते है। 
5 क्षिप्र - अश्वनी, पुष्य, हस्त, तथा अभिजीत इनकी लघु संज्ञा है। इनमे वाणिज्य, रति, आभूषण धारण करना, राजगिरि कार्य कला, मंगल कार्य सिद्ध होते है। 
6 मृदु - मृगशीर्ष, अनुराधा, चित्रा, रेवती ये मृदु नक्षत्र है। इनमे गीत-गायन, विहार, वस्त्र धारण, मित्र कार्य, एवं समस्त शुभ कार्य सिद्ध होते है। 
7 तीक्ष्ण - आर्द्रा, आश्लेषा, ज्येष्ठा, मूल ये तीक्ष्ण संज्ञक नक्षत्र है। इनमे अभिचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, अनाचार, दूराचार, घात, धोखा, तोड़-फोड़, पशुदमन आदि उग्र कर्म सिद्ध होते है।

नक्षत्र को गण निम्न है।
देव गण - जातक सत्यभाषी, शुद्ध आचारणी, ईश्वर भक्त, उदार, लोक कल्याणक, प्रभावी, विद्याअभ्यासी, या विश्व प्रेमी, दैविक शक्ति प्राप्त, साहसी, संघर्षशील, दुःख मे भी शान्त, सहृदयी, क्षमावान, धार्मिक, पर्यटन प्रिय, सत्संगी, विवेकशील, स्वानुगामी, दानी, बुद्धिमान, अल्पाहारी, सत्व गुणी होता है।
मनुष्य गण - जातक मानी, आत्म विश्वासी, प्रेमी, धन लोलुप, शीध्र आसक्त, विषय वासना युक्त, घर कुटुम्ब स्त्री से विशेष प्रेम, धनवान, स्वार्थी, तनाह, नगर वासियो को वश मे करने वाला, रजोगुणी होता है।
राक्षस गण - जातक गुस्सैल, झगड़ालू, भूल का अस्वीकारी, दूसरो की हानि परेशानी तकलीफ दुःख से खुश, श्रेष्ठ क्षमतावान, निडर, पराक्रमी, महत्वाकांक्षी, अस्वस्थ, तीक्ष्ण भाषी, वाचाल, मनमौजी,  साहसी, बन्दे को फजीते मे ही मजा वाला तामसी होता है। किसी-किसी जातक में ये दोष अत्यंत ही अल्प परिमाण मे होते है ऐसा सूर्य चंद्र की प्रबलता के कारण होता है।
गण के  गुण धर्म अनुसार पति-पत्नी, मालिक-नौकर, पिता-पुत्र, व्यक्ति-प्रतिव्यक्ति, आदि के आपसी सम्बन्ध, भविष्य, सफलता,  निराकरण, जय पराजय आदि का विचार किया जाता है।
 देव गण नक्षत्र: 
अश्विनी, पुष्य, मृगशीर्ष, हस्त, पुनर्वसु, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, रेवती
मनुष्य गण नक्षत्र: 
भरणी, आर्द्रा, रोहिणी, पू.फाल्गुनी, उ. फाल्गुनी, पू.भाद्रपद, उ.भाद्रपद, पू.षाढ़ा, उ.षाढ़ा

राक्षस गण नक्षत्र :
कृतिका, आश्लेषा, मघा, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा