Friday, July 17, 2015

॥ चन्द्र कालानलचक्रम् ॥


॥ चन्द्र कालानलचक्रम् ॥ 

कार्कटकेनेह विधाय वृतम् रेखा यामोदक परपूर्वगश्च 
लेखवया बहिर्गा विलसत त्रिशूला: कोणश्च रेखावदिताएं 
साध्या:॥
पूर्व त्रिशूल खलु मध्यसंस्थे चंद्रोदुलेख्यम् तदनुक्रमेंन 
प्रदक्षिणेनैव बहिस्तदन्त: कलनलम चन्द्रमसो निरुत्कम ॥






















आकृति निर्माण करे। उत्तर दिशा में त्रिशूल के बीच के एरो पर चन्द्रनक्षत्र  लिखिए |
वहाँ से क्रमश अन्य नक्षत्र लिख्ये. तब चन्द्रकलानल चक्र बनेगा |

फल विचार ::
यदि जन्मनक्षत्र त्रिशूल पर आता है तो जातक मृत्यु  तुल्य पीड़ा होती है ।
यदि जन्मनक्षत्र त्रिशूल सिवाय अन्य स्थान पर आये तो लाभ होता है।

उदाहरण: 
आज यदि कृतिका चन्द्रनक्षत्र है। जिसे त्रिशूल के मध्य ऐरो पर लिखे। अन्य नक्षत्र क्रमश लिखिये। 
अब जन्मनक्षत्र यदि आश्लेषा है तो त्रिशूल पर आएगा ।
 यदि आर्द्रा है तो त्रिशूल पर नहीं आएगा |


                                                                                               
                                                                                              www.deojyotishalaya.com