॥ चन्द्र कालानलचक्रम् ॥
कार्कटकेनेह विधाय वृतम् रेखा यामोदक परपूर्वगश्च
लेखवया बहिर्गा विलसत त्रिशूला: कोणश्च रेखावदिताएं
साध्या:॥
पूर्व त्रिशूल खलु मध्यसंस्थे चंद्रोदुलेख्यम् तदनुक्रमेंन
प्रदक्षिणेनैव बहिस्तदन्त: कलनलम चन्द्रमसो निरुत्कम ॥
आकृति निर्माण करे। उत्तर दिशा में त्रिशूल के बीच के एरो पर चन्द्रनक्षत्र लिखिए |
वहाँ से क्रमश अन्य नक्षत्र लिख्ये. तब चन्द्रकलानल चक्र बनेगा |
फल विचार ::
यदि जन्मनक्षत्र त्रिशूल पर आता है तो जातक मृत्यु तुल्य पीड़ा होती है ।
यदि जन्मनक्षत्र त्रिशूल सिवाय अन्य स्थान पर आये तो लाभ होता है।
उदाहरण:
आज यदि कृतिका चन्द्रनक्षत्र है। जिसे त्रिशूल के मध्य ऐरो पर लिखे। अन्य नक्षत्र क्रमश लिखिये।
अब जन्मनक्षत्र यदि आश्लेषा है तो त्रिशूल पर आएगा ।
यदि आर्द्रा है तो त्रिशूल पर नहीं आएगा |
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