एक नाड़ीस्थनक्षत्रे दम्पत्योर्मरण ध्रुवं ।
सेवायां च भवेद्धानि विवाहे प्राण नाशकः ।।
वर-कन्या कि एक नाड़ी हो तो निश्चय मरण, सेवा में हानि और विवाह में प्राणों का नाश होता है ।
आदि नाड़ी वर हान्ति मध्य नाड़ी च कन्यकाम् ।
अन्त्यनाड़ायां दूयोमृत्यु नाड़ी दोषं त्यजेद् बुधः ।।
आदि नाड़ी वर को, मध्य नाड़ी कन्या को और अन्य नाड़ी दोनों का हनन करती हैं। इससे नाड़ी दोष विद्वानों को त्याग देना चाहिए।
नाड़ी दोषश्च विप्राणां वर्णदोषस्तु भुभ्रुजाम्।
गण दोषश्च वैश्यषु योनि दोषतु पादजाम्।।
विवाह में ब्राह्मणों के लिए नाड़ी दोष, क्षत्रियों के लिए वर्ण दोष, वैश्यों को गण दोष और शुद्रों को योनि दोष विशेष कर विचारनाचाहिए।
एक नक्षत्र जातानां नाड़ी दोषो न विधते।
अन्यर्क्षे नाड़िवेधे च विवाहो वर्जितः सदा।
ऐकर्क्षे चैक पापे च विवाहो मरणः प्रदः।।
ऐकर्क्षे भिन्न पापे च विवाहः शुभदायक ।।
एक नक्षत्र में उत्पन्न हुए वर-कन्या को नाड़ी का दोष नहीं है। जो दूसरे नक्षत्रों का नाड़ी वेध हो तो विवाह सदा वर्जित है परन्तु एक नक्षत्र में एक ही चरण हो तो विवाह मरणदायक और एक नक्षत्र में अलग-अलग चरण हो तो विवाह शुभदायक है..
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